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शनिवार, 9 अगस्त 2014

भैया मेरी राखी के बंधन को निभाना


आज श्रावण मास की पूर्णिमा है ।रक्षाबंधन के पावन पर्व   का दिन है।  भाई और  बहन को स्नेह की डोर से बाँधने वाले त्यौहार का  दिन।   हर्षोल्लास का दिन। आज   बहने अपने भाई की  कलाई पर राखी  बाँधेंगी और उनके लम्बे जीवन की  कामना करेंगीं। प्रेम और स्नेह की यह पावन  डोर भाई को उसके  कर्तव्य और दायित्व का स्मरण करायेगी । दूर रहने वाले भाइयों को डाक द्वारा राखी भेजकर बहन याद दिलाएगी कि जरूरत पड़ने पर तुम्हें मेरी रक्षा के लिए आना होगा।

भाई बहन का यह पावन पर्व आज से नहीं बल्कि युगों युगों से चला आ रहा है। पुराणों की कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया।  देवता हारने लगे। तब इंद्र की पत्नी शची ने गायत्री मन्त्र पढ़कर  देवताओं के हाथ में  राखी बाँधी । उसके प्रभाव से  देवताओं में नई  शक्ति आगई। वे जोर शोर से लड़े  और  विजयी हुए।   तब से प्रतिवर्ष  यह पर्व  मनाया जाने लगा।

 रक्षाबंधन से सम्बंधित कई ऐतिहासिक प्रसंग भी हैं। विश्व-विजयी बनने का सपना संजोये हुए  सिकंदर  ने    पुरू  के  राज्य पर आक्रमण कर दिया।पुरू बहुत  शक्तिशाली  राजा था।   सिकंदर की हार और मृत्यु  निश्चित है -यह सोचकर  उसकी पत्नी ने राजा  पुरू को  राखी बाँधकर  मुँहबोला भाई बना लिया। युद्ध के मैदान में  राजा ने  सिकंदर को  परास्त कर दिया। वे   उसका संहार करने ही वाले थे कि   कलाई  पर बँधी राखी दिखाई पड़  गई ।पुरू  के  ह्रदय में भ्रातृभाव उत्पन्न हो गया।   उसने   अपने शत्रु सिकंदर को प्राणदान दे  दिया।

एक बार चित्तौड़  की  रानी करणवती   के राज्य पर गुजरात के शासक बहादुरशाह ने  भारी दलबल के साथ    हमला बोल  दिया। करणवती  का सैन्यबल कमजोर था।   उसकी  पराजय निश्चित थी। यह सोचकर  रानी ने दिल्ली के तत्कालीन शासक हुमायु को मोतियों से जड़ी एक राखी भेज दी। हिमायु हिन्दू बहिन द्वारा  भेजी गई उस राखी की रक्षा हेतु भारी सैन्य-बल के   साथ मारवाड़ आ पहुँचा।

भारत पर्वों  और त्योहारों का देश है। यहाँ होली, दिवाली, दशहरा आदि  अनेक त्यौहार  हैं जो  बहुत धूम-धाम से मनाये जाते  है। सबका   विशिष्ट महत्त्व हैं।सबके  सार्थक  आधार हैं ।    किन्तु  रक्षाबंधन का अपना   अलग  ही महत्त्व  है। यह  पर्व मानव हृदय में भ्रातृभाव उत्पन्न  करता है।  पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाता है। कर्तव्य पालन का बोध कराता है।  जिससे  शांति और सद्भाव की  उत्पत्ति होती  है। शांति, सद्भाव और बंधुत्व भावना को बढ़ावा देने के लिए हम सबका कर्तव्य है कि   इस पर्व  के  मूल्यवान सन्देश को जीवन में अवश्य धारण  करें ।






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वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां ।
यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।i
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।।
(श्रीमदभागवद्महापुराण)


अर्थ:

यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा.