भारत एक विशाल एवं महान देश है। समय समय पर यहाँ ऐसे उज्ज्वल नक्षत्रों का उदय होता रहा है,जिनके प्रकाशपुंज से देश का कोना कोना चमक उठा। ऐसे महापुरुषों का जन्म न केवल पौराणिक कथाओं तक सीमित हैं, बल्कि इतिहास के पन्नो को पलट कर देखें तो आधुनिक युग में ऐसे अनेक युगपुरुष मिलेंगें जिनके नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं। आधुनिक समय के ऐसे महान पुरुषों में महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री का नाम अग्रिम पंक्तियों में आता है। महात्मा गांधी ने जहाँ वर्षों से गुलामी का दंश झेल रही भारतमाता को आज़ाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीँ लालबहादुर शास्त्री ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को परास्त करके भारत माता की मानमर्यादा और गौरव में वृद्धि की। संयोगवश इन दोनों महान विभूतियों का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ था। इसीलिए तो कहते है -
आज का दिन शुभ दिन है,
आज का दिन बड़ा महान।
आज के दिन दो फूल खिले थे,
जिससे महका हिंदुस्तान।
2 अक्टूबर का दिन हम भारतीयों के लिए बहुत शुभ और महान है। इस दिन दो महान विभूतियों ने जन्म लिया था, जिन्होंने भारत माँ की पावन बगिया में सुगंध बिखेरे थे।
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात प्रान्त के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था।इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतली बाई था।महात्मा गांधी के बचपन का(पूरा) नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।बाद में सत्य और अहिंसा का पालन करने के कारण महात्मा नाम से विख्यात हुए।उन्हें बापू नाम से भी जाना जाता है। इनका विवाह 14 वर्ष की छोटी आयु में कस्तूरबा माखनजी से हुआ था। कस्तूरबा करमचंद की चौथी पत्नी थी। उनकी तीन पत्नियों प्रसव के समय गुजर गईं थीं। कस्तूरबा के चार पुत्र हुए, जिनके नाम थे - हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास।
महात्मा गांधी बचपन के संस्कारों के प्रभाव से सत्यवादी, समदृष्टा और स्वाभिमान प्रिय व्यकतित्व के धनी बने। सत्य अहिंसा और सादगी को अपना धर्म मानने वाले महात्मा जी स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी नेता बने। 1921 के 'असहयोग आंदोलन', 1930 में दांडी मार्च और 1942 के 'भारत छोडो आंदोलन' में गांधी जी ने स्वतंत्रता सेनानियों का सफल नेतृत्व किया और ख्याति प्राप्त की । उनके अथक प्रयासों से और स्वतंत्रता सेनानियों के अनगिनत बलिदानों की बदौलत1947 में 15 अगस्त की मध्य रात्रि को भारतीय स्वतंत्रता की घोषणा हुई। महात्मा जी को 'राष्ट्रपिता' होने का गौरव प्राप्त हुआ।
आज़ादी के एक वर्ष के भीतर 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा के दौरान नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी।प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनके जन्म दिवस को 'गांधी जयंती और अहिंसा दिवस ' के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
आज़ादी के एक वर्ष के भीतर 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा के दौरान नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी।प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनके जन्म दिवस को 'गांधी जयंती और अहिंसा दिवस ' के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय :
जन्म तिथि - 2 अक्टूबर 1904 .
जन्म स्थान - मुगलसराय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
प्रधानमंत्री - 9 जून, 1964 से 11 जनवरी 1966 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
पिता का नाम - मुंशी शारदा प्रसाद।
जीवन साथी - ललिता।
संतान - कुसुम, सुमन (दो पुत्रियाँ )और हरिकृष्ण, अनिल,सुनील, अशोक (चार पुत्र )
म्रत्यु - 11 जनवरी, 1966 को रात्रि में रहस्यमय परिस्थितियों में ताशकंद में।
27 मई 1964 को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का देहांत हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि वाले लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया।उनकी निष्ठा और प्रतिभा की बदौलत उन्हें आज़ाद भारत का द्वितीय प्रधानमंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने 9 जून 1964 को पदभार ग्रहण किया। उनके क्रियाकलाप सैद्धांतिक न होकर व्यवहारिक थे। उनके शासनकाल के दौरान देश में अन्न की अत्यंत कमी हो गई थी।उपज बढ़ाने के लिए उन्होंने ने किसानों को बहुत प्रोत्साहित किया। भारतीय सैन्य शक्ति के बल पर उन्होंने पाकिस्तान पर एक शानदार विजय हासिल की थी। इन दोनों घटनाओं से प्रेरित शास्त्री जी ने "जय जवान जय किसान " का नारा दिया था। यह लोकप्रिय नारा आज भी हर भारतीय की जुबान पर रहता है।
पाकिस्तान को अमेरिका का वरदहस्त हासिल था। अमेरिका पाकिस्तान को घातक लड़ाकू हथियार सप्लाई करता था। पाकिस्तान के पास घातक लड़ाकू हथियारों का बड़ा जखीरा इकट्ठा हो गया था। इससे वह अपने आप को क्षेत्र की 'बड़ीशक्ति' होने का वहम पाले हुए था।अपने मुकाबले भारत को कुछ नहीं समझता था। इसी घमंड में चूर 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। शास्त्री जी ने बहुत समझदारी से काम लिया। हिम्मत एवं दृढ़ता का परिचय देते हुए इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह परास्त किया। भारत की बहादुर फ़ौजों ने पाकिस्तानके बहुत बड़े भूभाग कब्ज़ा कर लिया और वहाँ तिरंगा लहरा दिया।
अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को भारत की यह जीत फूटी आँखों भी नहीं सुहाई। साजिस करके ईर्षालु देशों ने शास्त्री जी को ताशकंद आमंत्रित करके और दबाव डालकर , भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि करवा दी। इसे 'ताशकंद समझौते' के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में अन्य बातों के अलांवा भारत को पाकिस्तान का जीता हुआ भूभाग लौटने की शर्त भी शामिल थी। समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 को रात्रि में रहस्यमय परिस्थितियों में ताशकंद में उनकी मृत्यु हो गई ।
शास्त्री जी को सादगी, देशभक्ति, ईमानदारी और बहादुरी के लिए आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक स्मरण करता है। उन्हें मरणोपरांत 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
शास्त्री जी को सादगी, देशभक्ति, ईमानदारी और बहादुरी के लिए आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक स्मरण करता है। उन्हें मरणोपरांत 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।